बेजुवानों के लिए बेदर्द है दिलवालों की दिल्ली

नई दिल्ली. राजधानी में प्रतिबंधित पक्षियों की बिक्री जारी है। कई दुकानों में ऐसे प्रतिबंधित पक्षी छिपाकर बेचे जा रहे हैं, जो संरक्षित पक्षियों की श्रेणी में आते हैं। इसकी पुख्ता जानकारी हासिल करनेके लिए जब कुछ पक्षी बाजार में ‘भास्कर’ ने पड़ताल की तो परोक्ष रूप से कुछ दुकानदारों ने यह स्वीकार कर लिया कि उनके पास प्रतिबंधित पक्षी हैं, पर वह इन्हें खुले आम नहीं बेचसकते। खास बात यह है कि इन पक्षियों को यहां अन्य पक्षियों की तुलना में बहुत ही निर्दयतापूर्वक छिपाकर रखा जा रहा है। पक्षियों के दर्द पर प्रणति तिवारी की रिपोर्ट।
शहर के सबसे बड़े चांदनी चौक स्थित कबूतर बाजार की एक दुकान में जायजा लिया तोयहां की स्थिति बहुत ही दयनीय दिखी। पहले तो दुकानदारों ने प्रतिबंधित पक्षियों के नहीं होने की बात कही, पर ज्यादा रुपए देने के नाम पर एक दुकानदारने यह कबूल कर लिया कि उसकेपास पैराकीट तोता है, जो प्रतिबंधित है। दुकान के अंदर सौदा तय हुआ तो उसने दीवारों पर टंगे छोटे से झोले को उतारा और गांठ खोलकर चुपके से तोते का एक जोड़ा दिखाया जो एक-दूसरे से बेदर्दी से दबा हुआ था। झोले को देखकर कोई यह अंदाजनहीं लगा सकता था कि इनमें जिंदा पक्षी हैं। मोल-तोल करने पर उसने बताया कि यह तोता किसी दुकान में नहीं मिलेगा, क्योंकि पुलिस के डर से दुकानदार इसे नहीं रखते हैं। हालांकि, इन पक्षियों की कीमत अन्य की तुलना में कहीं ज्यादा मिलती है।
पॉलिटिशियन की शह पर होता है कारोबार
जानवरों के लिए काम कर रही संस्था पीपल्स फॉर एनिमल के (रेडिंग ऑफिसर) सौरभ गुप्ता ने बताया कि दिल्ली में यह व्यवसाय सालों से चलरहा है। मुश्किल यह है कि इन कारोबारियों को कई बड़े पॉलिटिकल पार्टी और लोकल एमएलए की शह मिली हुई है। लालकिला के आस-पास के क्षेत्रों से पिछले सात सालों में 50 से ज्यादा मुकदमे इसी कानून के तहत दर्ज किए गए हैं, जहां एग्जॉटिक पक्षियों के नाम पर प्रतिबंधित पक्षियों कीखरीद-फरोख्त सबसे ज्यादा है। इनमें तरह-तरह की मैना,बाज, उल्लू, तोता और मोर की कई प्रजातियां शामिल हैं।
खरीदारों में अरब देशों के नागरिक भी पाए गए हैं, जो इन्हें अपने देशों तक पहुंचाकर भारी कमाई करते है। पिछले दिनों संस्था ने करीब 200 एलेक्जेंड्रा तोतों को रोडवेज बस से छुड़ाया था। सौरभ गुप्ता ने बताया कि छुड़ाए गए पक्षियों को कोर्ट के ऑर्डर आ जाने के बाद नेचुरलहैबिटैट में छोड़ दिया जाता है। यदि कोई पक्षी नहीं उड़ पाता है तो उन्हेंखुले छत वाले बड़े पिंजरे में रखा जाता है, जिससे उड़ने की वह फिर से कोशिश शुरू कर दें। इन्हें संजय गांधी एनिमल हॉस्पिटल में रखा जाता है।

8 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

ये सब क़ानून नेताओं के ऊपर लागू नही होते,,,,,,

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Shalini kaushik said...

dilli vale to apne ko bahut jor shor se dilwala kahte hain aapki post kam se kam ek bar to unhe apne gireban me jhankne ko majboor karegi hi.nice presentation. . ''बेरोजगारों की भीड़ ''.

S.N SHUKLA said...


saarthak aur saamayik post, aabhar.

Sanju said...

दिल्ली वालोँ से ऐसी उम्मीद नहीँ थी।
सच्चाई उजागर करती पोस्ट....

virendra sharma said...

सबसे बड़े मनोरम पक्षी तो ये उलूक (नेता नुमा )हैं इन्हें बादे मर्ग एसितिलीन में रखा जाए .पक्षी तो पर्यावरण पारितंत्रों की रौनक उसकी नव्ज़ और हरारत का जीवित एहसास हैं .बहुत मार्मिक प्रस्तुति इंडिया दर्पण की .बधाई स्वीकार करें .
वीरुभाई ,कैंटन ,मिशिगन .

Anonymous said...

सच...मार्मिक पोस्ट

Dr.NISHA MAHARANA said...

marmik ...katu satya ko ujagar karti rachna ..

संजय भास्‍कर said...

sunder vastavik sach ujagar karti post